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हमारी कॉलोनी के काका

उम्र के इस मोड़ पर भी….किसी को नमस्ते कहती हूँ…और वे आशिर्वादस्वरूप मेरी हथेली पर कभी कोई टॉफी..लेमनचूस…खट्टी-मीठी गोलियाँ तो कभी दो बेर रख देते हैं. मेरे ये कहने पर…”क्या काका….हम बच्चे थोड़े ही हैं…” वे मुस्कुरा कर कहते हैं….”अरे खा … पढना जारी रखे

काका, मराठी साहित्य'श्रीनिवास रा. तलवलकर', संस्मरण, kaka में प्रकाशित किया गया | 36 टिप्पणियां