पता नहीं कितने लोगो को कहते सुना ..मेरा बरसो पुराना फ्रेंड फेसबुक या नेट के माध्यम से मिला/मिली …और मैं खीझ कर रह जाती…मुझे तो मेरी कोई फ्रेंड मिलती ही नही…अधिकाँश फ्रेंड्स की तो शादी के बाद सरनेम चेंज हो गए होंगे…इसलिए नहीं मिलती…पर सीमा…सीमा, क्यूँ नहीं मिलती??…उस से तो उसकी शादी के बाद भी मुलाकात होती रही….बस पिछले 12 बरस से बिछड़ गए हैं हम…उसके पति का सरनेम भी पता है..फिर भी ना तो वो नेट पर मिलती ना ही फेसबुक पर. ब्लॉग पर भी कभी पोस्ट में कभी टिप्पणियों में उसके शहर उसकी कॉलोनी का जिक्र कर देती हूँ …कि कोई पहचान वाला पढ़े तो शायद मदद कर सके… समस्तीपुर वालों से तुरंत दोस्ती का हाथ बढ़ा देती हूँ ….शायद वे जानते हों…पर हर बार निराशा ही हाथ लगी.
सीमा ,कॉलेज के दिनों की मेरी बेस्ट फ्रेंड थी…जबकि हम एक साथ कभी पढ़े भी नहीं. पर उन दिनों वो ही मेरी बेस्ट फ्रेंड थी. उस से दोस्ती का किस्सा भी बड़ा अजीब है. बारहवीं के बाद मैने घर में ऐलान कर दिया था कि मैं अब हॉस्टल में रहकर नहीं पढूंगी…बल्कि समस्तीपुर में ही पढूंगी(जहाँ पापा कि पोस्टिंग थी) . मम्मी-पापा ने समझाया..’ठीक है..पहले जाकर कॉलेज देख लो…अगर अच्छा लगे तो यहीं पढना” और मैं अपने पड़ोस में रहनेवाली एक लड़की के साथ वहाँ के विमेंस कॉलेज गयी. वहीँ पर मेरी मुलाकात सीमा से हुई और हमारी तुरंत दोस्ती हो गयी…करीब एक हफ्ते तक कॉलेज जाती रही…हम साथ लौटते…एक गली मेरे घर की तरफ मुड जाती…और सीमा कुछ और लड़कियों के साथ सीधी चली जाती. एक हफ्ते में ही मैने निर्णय ले लिया कि नहीं हॉस्टल में रहकर ही पढूंगी. सीमा से मुलाकात भी ख़त्म हो गयी. मेरा एडमिशन हो गया…और सरस्वती पूजा के बाद मुझे हॉस्टल जाना था. सरस्वती पूजा के दिन…सीमा मेरा घर ढूँढती हुई मुझसे मिलने आई…फिर तो हम साथ घूमने चले गए…उसके बाद से ही अक्सर हमारी शामें,एक दूसरे के घर के छत पर गुजरने लगीं.
उन दिनों हमारी दुनिया थी…किताबें..पत्रिकाएं…फिल्मे ,क्रिकेट और जगजीत सिंह की गज़लें.. फिल्म हम साथ देखते…किसी पत्रिका में कोई कहानी पढ़ लेते तो दूसरे के लिए रख देते और जब उस कहानी की बातें करते तो पता चलता…हम दोनों को वो ही अंश पसंद आए हैं. एक ने जो किताब पढ़ी..दूसरे को पढवाना अनिवार्य था. एक शाम,सीमा…एक मोटी सी किताब लेकर आई जिसमे अमृता प्रीतम की तीन लम्बी कहनियाँ…कुछ छोटी कहानियाँ और कुछ कविताएँ संकलित थीं. किताब देखकर मुझे हर्ष और विषाद एक साथ हुआ…दूसरे दिन ही मुझे हॉस्टल जाना था. पर सीमा ने ताकीद कर दी…पूरी किताब ख़त्म करनी ही है…हम इन कहानियों पर बातें करेंगे. मेरी रूचि तो थी ही…और पूरी रात जागकर मैने वो सारी कहानियाँ पढ़ीं (उनमे अमृता प्रीतम की मशहूर कहानियाँ .. पिंजर और नागमणि भी थी) .
सीमा की प्रतिक्रिया देखकर ही मुझे ये पता चला…’हर उम्र पर किताबो का असर अलग रूप में होता है” मैने नवीं कक्षा में ‘गुनाहों का देवता ‘पढ़ी थी ..और आज तक…वही असर है..पर सीमा को शायद बी.ए. फाइनल इयर में मैने उसके जन्मदिन पर ‘गुनाहों का देवता’ दी थी…उसे अच्छी लगी..पर उतनी नहीं, जितनी मुझे लगी थी. मेरे भी हर जन्मदिन पर सुबह-सुबह….कोहरे में लिपटी दो दो स्वेटर पहने..मोज़े जूते स्कार्फ से लैस. (क्यूंकि पूरा जाड़ा…उसका सर्दी-जुकाम-बुखार से लड़ते गुजरता )सीमा, अमृता-प्रीतम..मोहन राकेश की कोई किताब लिए मेरे घर हाज़िर हो जाती. उन दिनों..हमें ‘ Pride and Prejudice ” Wuthering Hights ‘बहुत अच्छे लगते . Erich Segal की Love Story तब भी हम दोनों को उतनी अच्छी नहीं लगी थी…जबकि वो अंग्रेजी की ‘गुनाहों का देवता’ है.
उन दिनों मैने कहानियाँ लिखना शुरू कर दिया था…और सीमा उनकी पहली पाठक ही नहीं…जबरदस्त आलोचक की भूमिका भी निभाती. {याद नहीं कभी तारीफ़ किया हो..:( }
हॉस्टल में भी लम्बे लम्बे ख़त के सहारे हम साथ बने रहते. कभी-कभी छुट्टियों में मुझे दादाजी गाँव ले जाते ..जहाँ टी.वी. था तो सही..पर बैटरी पर चलता…सिर्फ रविवार को रामायण और फिल्म ही देखे जाते. क्रिकेट मैच के दिनों में एक-एक मैच के हाइलाइट्स सीमा मुझे लिख भेजती. सुनील गावस्कर की आत्मकथा ‘सनी डेज़’ हम दोनों ने साथ पढ़ी थी. और ऐसे कितनी ही बहस हो जाए..पर सुनील गावस्कर और रवि शास्त्री हम दोनों के ही फेवरेट थे {मेरे तो आज भी हैं…सीमा का नहीं पता :)}
वैसे ही फेवरेट थे जगजीत सिंह…उन दिनों कैसेट का जमाना था…. “बात निकलेगी तो दूर…” कल चौदवीं की रात थी…’ देश में निकला होगा चाँद…” हम पता नहीं कितनी बार रिवाइंड करके सुनते….उस ढलती शाम में गूंजता..जगजीत सिंह का उदास स्वर हमें कहीं भीतर तक उदास कर जाता…जबकि वजह कोई नहीं होती.
पर कुछ मामलो में सीमा बहुत बेवकूफ थी. उसने दसवीं में पढ़ने वाले अपने कजिन को ‘ख़ामोशी’ फिल्म सजेस्ट कर दी..और जब उसे पसंद नहीं आई तो सीमा को बहुत आश्चर्य हुआ. ऐसे ही…उसके घर बोर्ड की परीक्षा देने उसके गाँव से कुछ लडकियाँ आई थीं. ,उनलोगों ने रविवार को टी.वी. पर फिल्म देखने की इच्छा जताई…सीमा ने उनके बैठने की व्यवस्था..बिलकुल टी.वी. के सामने की. पर फिल्म थी, ‘कागज़ के फूल’ कुछ ही देर में उनकी खुसुर पुसुर शुरू हो गयी…और सीमा मैडम नाराज़..”एक तो सामने बैठ गयीं..और अब डिस्टर्ब भी कर रही हैं..इतनी अच्छी फिल्म उन्हें कैसे अच्छी नहीं लगी.” यह बात उसे समझ में नहीं आती ..कि सबका लेवल अलग होता है…:)
बाज़ार से मुझे या सीमा को कुछ भी लाना हो..हम साथ जाते…और आने-जाने के लिए सबसे लम्बा-घुमावदार रास्ता चुनते..जाने कैसी बातें होती थीं ..जो ख़त्म होने का नाम ही नहीं लेतीं. सीमा को कॉलेज में कुछ काम होता और मैं शहर में होती तो हम साथ ही जाते उसके कॉलेज…पर कॉलेज में नहीं रुकते….उन दिनों कैफे….मैक डोनाल्डस तो थे नहीं…जहाँ समय गुजारे जा सकते. कॉलेज के पास एक निर्माणधीन मकान के अंदर जाकर कभी उसकी सीढियों पर बैठते तो कभी..उस घर के किचन की प्लेट्फौर्म पर. रेत-पत्थर -इंटों के ढेर के बीच…और हमें डर भी नहीं लगता…उस घर में एक तरफ मजदूर काम कर रहे होते…और एक तरफ हम बैठे अपनी बातों में मशगूल. अब सोच कर ही डर लगता है…अब शायद ही ऐसे माहौल में लडकियाँ सुरक्षित महसूस करें, खुद को….क्या होता जा रहा है,हमारे समाज को.
सीमा की शादी बहुत जल्दी हो गयी…और घर में शादी की बातचीत उस से भी पहले से शुरू हो चुकी थी. ऐसे में सीमा…सीधा मेरे घर आ जाती. पीछे से उसकी दीदी और कजिन…आतीं तब मुझे पता चलता..’मैडम घर से नाराज़ होकर आई है’ जाहिर है..इतनी जल्दी शादी की उसकी मंशा नहीं थी….पढ़ने में बहुत तेज थी..अपने कॉलेज की प्रेसिडेंट भी थी. दूसरे कॉलेज में किसी प्रोग्राम के सिलसिले में जाती तो उसकी धाक जम जाती. सारे लोग उसे पहचानते थे. मेरे पड़ोस में रहने वाली लड़की तो इसी बात पर इतराए घूमती और अपनी सहेलियों पर रौब जमाती कि उसके पड़ोस में ‘सीमा’ का आना जाना है. मैं, जब दुसरो से उसकी तारीफ़ सुनती तो पलट कर सीमा को एक बार देखती..’मुझे तो उसमे ऐसा कुछ ख़ास दिखता नहीं….किस बात की तारीफ़ करते हैं लोग.’ 🙂
समस्तीपुर से पापा का ट्रांसफर हो गया..मैं एम.ए करने पटना चली आई..सीमा ससुराल चली गयी. एक दिन मैं मनोयोग से लेक्चर सुन रही थी..और देखती क्या हूँ..मेरी क्लास के सामने सीमा अपने पतिदेव के साथ खड़ी है. एम.ए में थी..पर फिर भी कभी लेक्चर के बीच में क्लास छोड़ बाहर नहीं निकली थी. पहली बार बिना..प्रोफ़ेसर से कुछ पूछे बाहर आ गयी…और फिर थोड़ी देर में अपनी किताबें भी उठा कर ले आई. इसके बाद तो सीमा को जब भी मौका मिलता…मुझसे मिल जाती. मैं बनारस में अपनी मौसी के यहाँ थी…वहाँ, सीमा के डॉक्टर पति का कोई कॉन्फ्रेंस था..वो उनके साथ,अपने छोटे से बेटे को लेकर मुझसे मिलने चली आई. मेरी शादी में भी…अपनी छः महीने की बेटी को अपनी माँ के पास छोड़कर शामिल हुई थी.
पापा भी रिटायरमेंट के बाद पटना में आ गए थे. और सीमा अब पटना के एक स्कूल में बारहवीं कक्षा को पढ़ाती थी. शादी के बाद उसने बी.ए.,..एम.ए…..बी.एड. और पी.एच .डी. भी किया. सिविल सर्विसेज़ का प्रीलिम्स भी क्वालीफाई किया. am really proud of her 🙂 .पर वो समझ गयी थी कि mains नहीं कर पाएगी…क्यूंकि ससुराल में घर का काम….दो छोटे बच्चों की देखभाल के साथ मुमकिन नहीं था.
फिर तो, मैं जब भी गर्मी छुट्टियों में पटना जाती..पहला फोन सीमा को ही घुमाती. और हम मिलते रहते. करीब बारह साल पहले… गर्मी छुट्टी में पटना गयी तो आदतन फोन लगाया..बट नो रिस्पौंस…सीमा के स्कूल गयी…वहाँ ऑफिस में किसी ने बताया..”उनका तो स्थानान्तरण हो गया’ मुम्बइया भाषा के आदी कान को…ये समझने में ही दो मिनट लग गए. उनके पास सीमा का कोई कॉन्टैक्ट नंबर नहीं था और गर्मी छुट्टी की वजह से स्कूल बंद था..प्रिंसिपल,किसी टीचर से मिलना मुमकिन नहीं था. पटना में पापा ने भी नया घर ले लिया था ….मुंबई में हमने भी फ़्लैट ले लिया था. सबके फोन नम्बर बदल चुके थे. मुझे पता था, सीमा ने कोशिश की होगी..पर कहाँ ढूँढती हमें. और मैने सोचा लिया…”अब तक वो मुझे ढूँढती आई है…’इस बार सीमा को मुझे ढूंढना है.”
ऑरकुट पर मिली बेटे के साथ सीमा की फोटो जिसमे मैने उसे नहीं पहचाना
मैं कोशिश करती रहती. हर कुछ दिन बाद मैं उसका नाम लिख एक बार एंटर मार लेती…..पता नहीं कितनी सीमा के चेहरे की रेखाएं गौर से पढ़ने की कोशिश करती. और कामयाबी मिली कल..एक अक्टूबर को. उसके नाम के साथ जुड़ा था…प्रिंसिपल ऑफ़ कॉलेज…… {कॉलेज का नाम नहीं लिख रही…उसका कोई स्टुडेंट ना पढ़ ले, ये सब :)} पर इस से ज्यादा कोई इन्फोर्मेशन नहीं मिली. पर नीचे एक वेबसाईट का लिंक मिला..जिसमे परिचय में लिखा था.. son of Dr Rajkumar and Dr . Seema …early education in Darbhanga . दरभंगा सीमा की ससुराल थी.. अब इतने संयोग तो नहीं हो सकते. मैने जैसे ही नाम पढ़ा..याद आ गया…’सीमा के बेटे का नाम ‘ऋषभ’ है. पर कन्फर्म कैसे हो…ये सीमा का ही बेटा है. उसके ऑर्कुट प्रोफाइल का लिंक था. वहाँ फोटो में ढूँढने की कोशिश कि. एक फोटो थी माँ के साथ..पर उसमे सीमा पहचान में नहीं आ रही थी. हाँ, डॉक्टर साहब को जरूर पहचान लिया. ऋषभ का मेल आई डी भी मिल गया..और मैने झट से एक मेल भेज दिया…फिर भी सुकून नहीं आ रहा था…अब नाम पता चल गया तो फेसबुक पर ढूँढने की कोशिश की और पाया…ऋषभ ने माँ के साथ…अपने बचपन की एक तस्वीर लगा रखी है.
सीमा ही थी..:)
मैने सोचा…अब कहाँ वीकेंड में वो रिप्लाय करेगा…दोस्तों के साथ फिल्म देखने..पार्टी करने में बिजी होगा…अब सोमवार को ही reply करेगा . फिर भी सोने से पहले एक बार मेल चेक किया…..और..और ऋषभ का मेल था…जिसमे एक संदेश था…”.. apki timing bhi perfect hai .. Its her birthday tomorrow .. mamma ko bhi apse baat karke utni he khushi hogi i m sure ! 🙂
फेसबुक पर मिली फोटो जिसमें सीमा को पहचानना मुश्किल नहीं था.
सीमा का फोन नंबर भी था…और बारह बजने में बस तीन मिनट शेष थे….फि तो मैने एक पल की देरी नहीं की …बस बर्थडे विश किया और पूछा..पहचाना?…दूसरी तरफ से चीखती हुई आवाज़ आई..”कहाँ थी इतने साल??” सीमा ने आवाज़ पहचान ली…:)
जन्मदिन बहुत बहुत मुबारक हो सीमा..:):)